RITISH YADAV

Monday, February 28, 2011

Anselm of Canterbury by Ranjeet kumar yadav

Although born at Aosta in Alpine Italy and educated in Normandy, Anselm became a Benedictine monk, teacher, and abbot at Bec and continued his ecclesiastical career in England. Having been appointed the second Norman archbishop of Canterbury in 1093, Anselm secured the Westminster Agreement of 1107, guaranteeing the (partial) independence of the church from the civil state.
In a series of short works such as De Libertate Arbitrii (On Free Will), De Casu Diaboli (The Fall of the Devil), and the lengthier dialogue Cur Deus Homo (Why God became Man), Anselm propounded a satisfaction theory of the atonement, upon which the incarnation promises relief from the strict demands of divine justice. He defended a notion of the relation between philosophy and theology that, like Augustine's, emphasized the methodological priority of faith over reason, since truth is to be achieved only through "fides quaerens intellectum" ("faith seeking understanding"). Anselm Anselm's combination of Christianity, neoplatonic metaphysics, and Aristotelean logic in the form of dialectical question-and-answer was an important influence in the development scholasticism during the next several centuries.
As a philosopher, Anselm is most often remembered for his attempts to prove the existence of god: In De Veritate (Of Truth) he argued that all creatures owe their being and value to god as the source of all truth, to whom a life lived well is the highest praise. In the Monologion he described deity as the one most truly good thing, from which all real moral values derive and whose existence is required by the reality of those values. Anselm
Most famously, in the Proslogion (Addition), Anselm proposed the famous Ontological Argument, according to which god is understood as "aliquid quod maius non cogitari potest" ("that than which nothing greater can be conceived"). The being so conceived must necessarily exist in reality as well as in thought, he argued, since otherwise it would in fact be possible to conceive something greater—namely, something exactly simliar except that it really does exist. Thus, at least for Anselmian believers guided by a prior faith, god must truly exist as the simple, unified source of all perfections, a reality that excludes corruption, imperfection, and deception of every sort.

RINKU YADAV ONHAICH







Friday, February 25, 2011








सुकरात by RANJEET YADAV


बुद्ध की भाँति सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही उपदेशों को कंठस्थ करना शुरु किया था जिससे हम उनके उपदेशों को बहुत कुछ सीधे तौर पर जान सकते हैं; किंतु सुकरात के उपदेशों के बारे में यह भी सुविधा नहीं। सुकरात का क्या जीवनदर्शन था यह उसके आचरण से ही मालूम होता है, लेकिन उसकी व्याख्या भिन्न-भिन्न लेखक भिन्न-भिन्न ढंग से करते हैं। कुछ लेखक सुक्रात की प्रसन्नमुखता और मर्यादित जीवनयोपभोग को दिखलाकर कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक शारीरिक कष्टों की ओर से उसकी बेपर्वाही तथा आवश्यकता पड़ने पर जीवनसुख को भी छोड़ने के लिए तैयार रहने को दिखलाकर उसे सादा जीवन का पक्षपाती बतलाते हैं। सुकरात को हवाई बहस पसंद न थी। वह अथेन्स के बहुत ही गरीब घर में पैदा हुआ था। गंभीर विद्वान् और ख्यातिप्राप्त हो जाने पर भी उसने वैवाहिक जीवन की लालसा नहीं रखी। ज्ञान का संग्रह और प्रसार, ये ही उसके जीवन के मुख्य लक्ष्य थे। उसके अधूरे कार्य को उसके शिष्य अफलातून और अरस्तू ने पूरा किया। इसके दर्शन को दो भागों में बाँटा जा सकता है, पहला सुक्रात का गुरु-शिष्य-यथार्थवाद और दूसरा अरस्तू का प्रयोगवाद।
तरुणों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष उसपर लगाया गया था और उसके लिए उसे जहर देकर मारने का दंड मिला था।
सुकरात ने जहर का प्याला खुशी-खुशी पिया और जान दे दी। उसे कारागार से भाग जाने का आग्रह उसे शिष्यों तथा स्नेहियों ने किया किंतु उसने कहा-
भाइयो, तुम्हारे इस प्रस्ताव का मैं आदर करता हूँ कि मैं यहाँ से भाग जाऊँ। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन और प्राण के प्रति मोह होता है। भला प्राण देना कौन चाहता है? किंतु यह उन साधारण लोगों के लिए है जो लोग इस नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानते हैं। आत्मा अमर है फिर इस शरीर से क्या डरना? हमारे शरीर में जो निवास करता है क्या उसका कोई कुछ बिगाड़ सकता है? आत्मा ऐसे शरीर को बार बार धारण करती है अत: इस क्षणिक शरीर की रक्षा के लिए भागना उचित नहीं है। क्या मैंने कोई अपराध किया है? जिन लोगों ने इसे अपराध बताया है उनकी बुद्धि पर अज्ञान का प्रकोप है। मैंने उस समय कहा था-विश्व कभी भी एक ही सिद्धांत की परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। मानव मस्तिष्क की अपनी सीमाएँ हैं। विश्व को जानने और समझने के लिए अपने अंतस् के तम को हटा देना चाहिए। मनुष्य यह नश्वर कायामात्र नहीं, वह सजग और चेतन आत्मा में निवास करता है। इसलिए हमें आत्मानुसंधान की ओर ही मुख्य रूप से प्रवृत्त होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन में सत्य, न्याय और ईमानदारी का अवलंबन करें। हमें यह बात मानकर ही आगे बढ़ना है कि शरीर नश्वर है। अच्छा है, नश्वर शरीर अपनी सीमा समाप्त कर चुका। टहलते-टहलते थक चुका हूँ। अब संसार रूपी रात्रि में लेटकर आराम कर रहा हूँ। सोने के बाद मेरे ऊपर चादर उड़ देना।

अरस्तु by Ranjeet yadav


अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ थे. अरस्तु ने भौतिकीआध्यात्मकवितानाटक,संगीततर्कशास्त्रराजनीति शास्त्रनीतिशास्त्रजीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की.
प्लेटोसुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे. उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था. भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा. अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया. जीवविज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई. उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं. उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं. उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाए जाते हैं. अरस्तु ने बहुतेरे रचानाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई.

यूक्लिड by Ranjeet yadav


यूक्लिड (Euclid; 300 ईसा पूर्व) प्राचीन यूनान का एक गणितज्ञ था। उसे "ज्यामिति का जनक" कहा जाता है। उसकी एलिमेण्ट्स (Elements) नामक पुस्तक गणित के इतिहास में सफलतम् पुस्तक है। इस पुस्तक में कुछ गिने-चुनेस्वयंसिद्धों (axioms) के आधार पर ज्यामिति के बहुत से सिद्धान्त निष्पादित (deduce) किये गये हैं। इनके नाम पर ही इस तरह की ज्यामिति का नाम यूक्लिडीय ज्यामिति कहलाती है। हजारों वर्षों बाद भी गणितीय प्रमेयों को सिद्ध करने की यूक्लिड की विधि सम्पूर्ण गणित का रीढ़ बनी हुई
यूक्लिड ने शांकवों, गोलीय ज्यामिति और संभवत: द्विघातीय तलों पर भी पुस्तकें लिखीं

पाइथागोरस by Ranjeet yadav

सामोस के पाईथोगोरस जन्म 580 और 572 ई.पू. के बीच हुआ, और मृत्यु 500 और 490 ई.पू. के बीच हुई) एक अयोनिओयन (Ionianग्रीक (Greek)गणितज्ञ (mathematician) थे और पाईथोगोरियनवाद(Pythagoreanism)नामक धार्मिक आन्दोलन के संस्थापक थे.उन्हें अक्सर एक महान गणितज्ञ , रहस्यवादी (mystic) और वैज्ञानिक (scientist) के रूप में सम्मान दिया जाता है; हालांकि कुछ लोग गणित और प्राकृतिक दर्शन में उनके योगदान की संभावनाओं पर सवाल उठाते हैं.हीरोडोट्स उन्हें "यूनानियों के बीच सबसे अधिक सक्षम दार्शनिक" मानते हैं.उनका नाम उन्हें पाइथिआ (Pythia) और अपोलो से जोड़ता है; एरिस्तिपस (Aristippus)ने उनके नाम को यह कह कर स्पष्ट किया कि "वे पाइथियन(पाइथ-) से कम सच (एगोर-)नहीं बोलते थे,", और लम्ब्लिकास (Iamblichus)एक कहानी बताते हैं कि पाइथिआ ने भविष्यवाणी कि की उनकी गर्भवती मान एक बहुत ही सुन्दर, बुद्धिमान आदमी को जन्म देगी जो मानव जाती के लिए बहुत ही लाभकारी होगा.


वो पहले आदमी थे जो अपने आप को एक दार्शनिक, या बुद्धि का प्रेमी कहते थे, और पाइथोगोरस के विचारों ने प्लेटो पर एक बहुत गहरा प्रभाव डाला.दुर्भाग्य से, पाइथोगोरस के बारे में बहुत कम तथ्य ज्ञात हैं, क्योंकि उन के लेखन में से बहुत कम ही बचे हैं.पाइथोगोरस की कई उपलब्धियां वास्तव में उनके सहयोगियों और उत्तराधिकारियों की उपलब्धियां हैं


बर्ट्रेंड रसेल,ने पश्चिमी दर्शन के इतिहास (History of Western Philosophy),में बताया कि पाइथोगोरस का प्लेटो और अन्य लोगों पर इतना अधिक प्रभाव था कि वह सभी पश्चिमी दार्शनिकों में सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता था

गणराज्य by Ranjeet yadav


गणराज्य

गणराज्य (Republicलातिन भाषा से: Res Publica - जनता का राज्य) एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है । इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र कहा जाता है । "लोकतंत्र" या "प्रजातंत्र" इससे अलग होता है । लोकतन्त्र (en:Democracy) वो शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इछा से शासन चलता है । आज विश्व के अधिकान्श देश गणराज्य हैं, और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी । भारत स्वयः एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है 

लोकतंत्र

लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ "लोगों का शासन", संस्कृत लोक, "जनता" ,तंत्र ,"शासन", ) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है । यह शब्द लोकतांत्रिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक राज्य दोनों के लिये प्रयुक्त होता है। यद्यपि लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक संदर्भ में किया जाता है, किंतु लोकतंत्र का सिद्धांत दूसरे समूहों और संगठनों के लिये भी संगत है। सामांयतः लोकतंत्र विभिन्न सिद्धांतों के मिश्रण से बनते हैं, पर मतदान को लोकतंत्र के अधिकांश प्रकारों का चरित्रगत लक्षण माना जाता है

Communist party by Ranjeet yadav

political party described as a communist party includes those that advocate the application of the social principles of communism through a communist form ofgovernment. The name originates from the 1848 tract Manifesto of the Communist Party by Karl Marx and Friedrich Engels.

Thursday, February 24, 2011


Lawyer to Lalu: "Gita pe haath rakhkar kaho ke...... "
Funny Lalu : "Yeh kya, Sita pe haath lagaya to court mein Bulaya. Ab fir Gita pe haath!!"



Funny Santa, Banta & Laloo ik scooter par ja rahe the. A traffic cop tried to stop them.
Funny Santa: Sorry phaji, already 3 baithe hain. Bilkul bhi jagah nahin hai.

funny jokes

JudgeTum apni limit cross kar rahe ho.LawyerKaun saala aisa kehta he? JudgeTum ne muje sala bola? LawyerNahi My Lord, maine pucha KAUN SA LAW aisa kehta he?

photo of ranjeet